अधारताल - जैन धर्म में रक्षाबंधन पर्व को लेकर एक कथा का वर्णन मिलता है। उस कथा के अनुसार रक्षाबंधन का बहुत ही अधिक महत्व है।इस दिवस को श्रमण संस्कृति रक्षक दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। कथा के अनुसार - उज्जैनी नगर के राजा श्री वर्मा चार मंत्री - बलि,नमुचि, ब्रहस्पति, प्रहलाद थे। ये चारों जैन धर्म के प्रबल विरोधी थे। एक बार नगर के बाहर उद्यान में जैन धर्म के अकंपनाचार्य मुनि ७०० शिष्यों के साथ पधारे।राजा और उसके चारों मंत्री उस संघ के दर्शन हेतु उद्यान में गये। चूंकि अकंपनाचार्य जी को ज्ञात था कि राजा के चारों मंत्री जैन धर्म के प्रबल विरोधी हैं। अतः राजा के नमस्कार करने पर भी सभी मुनि मौन रहे। तब चारों मंत्रियों ने राजा को भड़का दिया कि यह मुनि संघ अज्ञानी है, इसीलिए सभी मौन हैं। नगर में वापसी के समय आचार्य के एक मुनि से चारों मंत्रियों के द्वारा धर्म के संबंध में वाद-विवाद करने पर मंत्रियों के हारने पर , रात्रि प्रहर में उन मुनि पर तलवार से वार किया,पर सच्चे मुनि की तपस्या के कारण वे चारों मंत्री वहीं कीलित हो गये। सुबह जब यह घटना राजा को ज्ञात हुई,तो उन्होंने उन चारों मंत्रियों को देश निकाला दे दिया। वहां से चलकर वे चारों मंत्री दूसरे नगर आये और राजा को प्रभावित कर उस राज्य के मंत्री बन गये। और अपने पराक्रम से दूसरे राज्य के राजाओं को हराकर राजा का दिल जीत लिया। राजा ने कहा कि आप सभी राज काज में बहुत दक्ष, बहुत चतुर और बहादुर हो, आपकी जो भी इच्छा हो, वह मांग सकते हो। उन चारों चतुर चालाक मंत्रियों ने कहा कि समय आने पर मांग लेंगे। एक बार वही अकंपनाचार्य अपने ७०० शिष्यों के साथ उस नगर में पधारे। चारों मंत्रियों को पता चला, तो उनके मन में उनसे पुराना बदला लेने की लालसा हो आई। उन्होंने पुराने उपकार के बदले राजा से सात दिन के लिए राज्य भार उन्हें सौंपने की इच्छा जाहिर की। राजा उनके बुरे मंतव्य से अनजान था।उसने उन्हें सम्पूर्ण राज्य का भार उन्हें सौंपा और अपने महल में आ गये। यहां पर राज्य का सम्पूर्ण भार चारों मंत्रियों के साथ में आने के बाद उन्होंने उन मुनियों से बदला लेने की ठानी। जहां पर उद्यान में अकंपनाचार्य अपने ७०० शिष्यों के साथ ठहरे थे, वहां पर उन चारों मंत्रियों ने चारों ओर बाड़ी लगवाकर आग लगवा दी,और उस आग में चमड़ा और धूनी लगाने की जहरीली वस्तुएं डलवाकर उन पर घोर उपद्रव - उपसर्ग करना शुरू कर दिया। सभी मुनि जोर जोर से खांसने लगे, उनकी सांस रूकने लगी।परन्तु अपने असाता कर्मों का उदय मानकर उन्होंने कोई प्रतिकार नहीं किया और शान्त भाव से समाधि मरण का नियम लेकर वहीं बैठे रहे। तत्पश्चात आकाशगामनी विद्या के धारी एक मुनि विष्णु कुमार ने ब्राह्मण का बहुत विशाल रूप भेष बनाकर उन चारों मंत्रियों से सभी मुनियों की रक्षा की। चारों मंत्रियों ने बहुत क्षमा याचना। और स्वयं उस जलती हुई बाड़ी को हटाया और सभी मुनियों को मुक्त किया। जैन धर्म के महान मुनि विष्णु कुमार जी ने अकंपनाचार्य एवं ७०० मुनियों की रक्षा की थी । पूरे नगर में बहुत अधिक खुशियां मनाई गईं। और संकल्प लिया कि हम सदा धर्म और धर्म को चलाने वाले मुनियों की रक्षा करेंगे। तभी से जैन धर्म में मुनियों की रक्षार्थ रक्षाबंधन पर्व मनाया जाता रहा है। इस दिन संपूर्ण भारत के सभी जैन मंदिर, तीर्थों और क्षैत्रों में सभी जैन बंधु सुबह मंदिर में जाकर बहुत भक्ति से भगवान का तथा अकंपनाचार्य आदि ७०० मुनि एवं मुनि विष्णु कुमार की पूजन करके भगवान के समक्ष रखी गईं राखी एक दूसरे को बांधते हैं और यह प्रण करते हैं कि मुनि विष्णु कुमार की तरह हम भी वर्तमान में हमारे आचार्य भगवन् मुनि संघ और जैन धर्म की सदा रक्षा करेंगे। इसी तारतम्य में आज श्रावण शुक्ल पूर्णिमा दिन शनिवार ९ अगस्त की सुबह ७ बजे से श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर अधारताल जबलपुर में भगवान का अभिषेक पूजन के पश्चात अकंपनाचार्य एवं ७०० मुनियों तथा मुनि विष्णु कुमार की पूजन अर्चन के पश्चात समस्त ७०० मुनियों की रक्षार्थ ७०० श्री फल समर्पित किये गये। जिसमें जैन समाज अधारताल के धर्मेंद्र जैन,अशोक जैन,नवल जैन,कैलाश कटंगा,संजय जैन, मनीष जैन,सुभाष जैन,सुभाष बड़कुल,नीरज जैन,अक्षय गड़ेकर, रवि जैन,शरद जैन, आशीष जैन, महेंद्र जैन,पवन जैन,दीपक गड़ेकर, प्रकाश गड़ेकर आदि का विशेष सहयोग रहा। रक्षा बंधन महापर्व की सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई। ( संजय जैन,सात प्रतिमाधारी ,अधारताल, जबलपुर)
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