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‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ के प्रति आत्मनिर्भरता का श्रीगणेश

 



आज जब हम ‘79वां स्वतंत्रता दिवस’ मना रहे हैं, पड़ोसी और विश्वस्तर पर कई चुनौतियां हमारे सामने हैं। अत: यह स्वयं को दृढ़संकल्पित, आत्म-संकल्पित और आत्म-संयमित करने का समय है। यह अशांति का युग है, जहां भारत ही एक मात्र देश है, जो शांति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। यह भगवान बुद्ध की पावन भूमि है। जहां से बुद्ध ने समस्त दुनिया को संदेश दिया था कि ‘क्रोध को प्रेम से जीतो’ तथा ‘अहिंसा परमो धर्म:’। भारत सदैव इसी मार्ग पर अग्रसर रहा है।

‘स्वतंत्रता दिवस’ स्वयं के चिंतन-मंथन का काल है। आज समूचा विश्व उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है। रिश्तों में 'व्यापार’ ढूंढ़ा जा रहा है और व्यवसाय के लिए युद्ध-भूमियां तलाशी जा रही हैं। लेकिन भारत सदैव ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के भाव और सुभाव का पक्षधर है।

हमारी वीर भूमि ने कई युद्ध देखे, लेकिन समस्त ‘धर्म युद्ध’ थे। धर्म अर्थात् मानवता-सद्भाव को जीवित रखने के प्रयास किसी भी युद्ध में हमने व्यापार नहीं देखा, जैसा कुछ कतिपय देश आज देखते हैं।

श्रीमद्भगवद्गीता में युद्ध को एक कर्तव्य और धार्मिकता के संदर्भ में समझाया गया है। कुरुक्षेत्र के युद्ध के दौरान अर्जुन और कृष्ण के बीच संवाद के रूप में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि युद्ध अंतिम विकल्प है। युद्ध से पहले सभी अहिंसक तरीकों से समस्या को सुलझाने का प्रयास करना चाहिए। भारत अपने पड़ोसियों से यही प्रयत्न करता आया है।

पाकिस्तानी सेना के फ़ील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने अमेरिका में एक कार्यक्रम के दौरान धमकी दी कि ‘भारत के साथ भविष्य की जंग में पाकिस्तान के अस्तित्व को ख़तरा हुआ तो वह पूरे क्षेत्र को परमाणु युद्ध में झोंक देगा।’ इसका उत्तर मेरे अराध्य श्रीश्री बाबाश्री की अमृत वाणी में है-‘पैशाचिक आदतें जब परंपरागत प्रचलन में आ जाती हैं, तो मानव का विकास; विनाश में परिवर्तित होने लगता है।’ पड़ोसी मुल्क इसी पैशाचिक प्रवृत्ति को जी रहा है। परिणाम सापेक्ष है, आर्थिक और सामाजिक, हर तरह से पाकिस्तान पिछड़ता जा रहा है।

श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी का यह कथन सदैव प्रासंगिक रहेगा। जब 11 और 13 मई, 1998 को भारत ने अपनी स्वतंत्रता को अक्षुण रखने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था, तब उन्होंने सशक्त वाणी से कहा था "मैं पूरे दावे से कह रहा हूं कि दुनिया की कोई भी ताकत हमें हमारे निर्धारित मार्ग से दूर नहीं कर सकती है। राष्ट्र की एकता, अखंडता औऱ सुरक्षा के लिए हम बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने के लिए तैयार हैं।" यह सिर्फ पाकिस्तान और चीन को चेतावनी भर नहीं थी, बल्कि दुनिया को भारत की ओर से एक प्रभावी संदेश था। यह उथल-पुथल भरा युग है। हमारे युद्ध साम्राज्यवाद के लिए नहीं, सदैव शांति की स्थापना के लिए हुए हैं। हम सदैव न्याय-सद्भाव और शांति के पक्षधर हैं। यही हमारा गौरवशाली इतिहास है।

इस बार का स्वतंत्रता दिवस नए संकल्प लेने का शुभ अवसर है। ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ के प्रति आत्मनिर्भरता के पथ पर निष्ठा-जोश से अग्रसर होने का श्रीगणेश है। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने 59वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने भाषण में कहा था कि "हमारे विकास पर कोई बाहरी बाधा नहीं है। यदि कोई बाधा है तो वह आंतरिक है।" लेकिन विदित रहे कि आतंरिक बाधा हमारे संकल्पों से बड़ी नहीं है। किसी की धमकियों से चिंतित होने की जरूरत नहीं है।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दृष्टिकोण और संकल्प- ‘2047 तक विकसित भारत’ को लेकर समग्र देशवासियों के एकसूत्र में बंधने का स्वर्णिम दिवस है। यह राष्ट्रीय चेतना की अभिव्यक्ति का दिन है। सदैव याद रहे कि ‘राष्ट्र प्रथम’ सर्वोपरि है। अटलजी जी कविता की एक अंतिम पंक्ति हैं -

आग्नेय परीक्षा की

इस घड़ी में

आइए, अर्जुन की तरह

उद्घोष करें

‘‘न दैन्यं न पलायनम्।

अर्थात् भारत का संदेश स्पष्ट है कि ‘न भारत झुकेगा और न कभी रुकेगा।’

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