बिहार - बिहार के सीतामढ़ी के सदर अस्पताल में सौर ऊर्जा से बिजली उपलब्ध कराने के उद्देश्य से बुडको ने करीब 90 लाख रुपये की लागत से एक महत्वाकांक्षी योजना को मंजूरी दी थी. इस योजना के तहत अस्पताल के विभिन्न भवनों की छतों पर सैकड़ों की संख्या में सोलर पैनल लगाए गए और बिजली स्टोरेज के लिए बैटरियां भी उपलब्ध कराई गईं. मकसद था कि जेनरेटर के जरिए मिलने वाली बिजली पर निर्भरता कम हो और डीजल की खपत घटे लेकिन, अफसोस कि यह योजना कागजों से आगे नहीं बढ़ सकी.
स्थानीय लोगों के मुताबिक, अस्पताल में जेनरेटर संचालकों की लापरवाही और हितों के टकराव के कारण सोलर सिस्टम को कभी पूरी तरह चालू ही नहीं होने दिया गया. नतीजा यह हुआ कि बैटरियां लंबे समय तक पड़े-पड़े खराब हो गईं. सोलर पैनलों का इस्तेमाल बिजली बनाने के बजाय अस्पताल के बेडशीट सुखाने में हो रहा है. यह नजारा न सिर्फ हास्यास्पद है बल्कि करोड़ों की सार्वजनिक धनराशि के दुरुपयोग की तस्वीर भी पेश करता है.
मात्र 100 रुपये है फ्यूज की कीमत
इस मामले पर जब अस्पताल प्रबंधन से सवाल पूछा गया तो अस्पताल मैनेजर अवनीश कुमार ने बताया कि हाल ही में सिस्टम चल रहा था लेकिन, शॉर्ट सर्किट के कारण फ्यूज उड़ गया है, जिससे यह बंद है. दावा किया गया कि दो-तीन दिनों में इसे फिर से चालू करा लिया जाएगा. हालांकि, अस्पताल के कई कर्मचारियों का कहना है कि यह सिस्टम शुरुआत से ही सही तरीके से चालू नहीं किया गया था. हैरानी की बात यह है कि जिस फ्यूज की वजह से पूरा सिस्टम बंद है उसकी कीमत महज 100 रुपये है.
इस मामले पर जब अस्पताल प्रबंधन से सवाल पूछा गया तो अस्पताल मैनेजर अवनीश कुमार ने बताया कि हाल ही में सिस्टम चल रहा था लेकिन, शॉर्ट सर्किट के कारण फ्यूज उड़ गया है, जिससे यह बंद है. दावा किया गया कि दो-तीन दिनों में इसे फिर से चालू करा लिया जाएगा. हालांकि, अस्पताल के कई कर्मचारियों का कहना है कि यह सिस्टम शुरुआत से ही सही तरीके से चालू नहीं किया गया था. हैरानी की बात यह है कि जिस फ्यूज की वजह से पूरा सिस्टम बंद है उसकी कीमत महज 100 रुपये है.